सच अष्ठमी और चतुर्दशी का
।।जय जिनेन्द्र।।
जैन धर्म में हजारों सालो से बहुत सी तिथियों को बहुत ऊँचा माना जाता है और उन तिथियों में वनस्पति (लिलोत्री) नहीं खाया जाता और संभव हो जंहा तक उपवास ही किया जाता है और उन तिथियों में में दो तिथियां सबसे प्रमुख है वो है अष्ठमी और चतुर्दशी ।
आइये इनके पीछे के वजहों पे चर्चा कर उनके राज को कम करने की कोशिस करते है।
अष्ठमी और चतुर्दशी इन तिथियों को वायुमंडल में वायु तत्व की बहुत ज्यादा अधिकता रहती है और वायुमंडल की सभी चीजों में और खासकर खाने पीने की चीजो को वायु अपने प्रभाव में ले लेता है और वायु का ये बड़ा हुए प्रभाव शरीर में न प्रवेश कर जाये इसलिए वनस्पति न खाने की और उपवास करने की मान्यता बनी है क्योंकि बड़ी हुयी वायु से शरीर में 80 तरह के रोग उतपन्न होते है, इसके अलावा मानसिक परेशानिया, फितूर और मोह माया की जकड़न बहुत बढ़ जाती है और इन दोनों तिथियों में तंत्र - मन्त्र और टोने टोटको भी प्रभाव बहुत बढ़ भी जाते है और बहुत किये भी जाते है।
इन परेशानियों से बचने के लिए सीधे सीधे इन दोनों तिथियों को उपवास करना सबसे अच्छा है।
अष्ठमी और चतुर्दशी सिर्फ जैन धर्म में ही नहीं सनातन धर्म में भी महत्वपूर्ण स्थान रखते है शिव जी को मानाने वाले, शिव साधक और अघोरी समाज भी अष्ठमी और चतुर्दशी को उपवास रखते है और इन तिथियों को बड़े दिनों में शामिल किया गया ।
इन परेशानियों से और बीमारियों से दूर रखने के लिए ही शायद इसी मान्यता को बनाया गया था और जन कल्याण के लिए बड़ा कदम उठाया गया।
।।जय जिनेन्द्र।।